Sunday, September 28, 2008

तू सी ग्रेट हो

कभी मुर्दा बोल उठता है कि पानी पिलाओ! तो कभी मृत घोषित बच्चा स्वस्थ!! दरअसल यह सब कुछेक की मेहनत और लगन का ही तो नतीजा है।

अगर ऐसा न होता तो भला बताओ कि मरने के बाद भी क्या कोई व्यक्ति बोल सकता है ? नहीं ना लेकिन पिछले माह हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित नयना देवी मंदिर में मची भगदड़ के दौरान प्रशासन की लापरवाही के चलते एक घायल को मृत मानकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया।

पोस्टमार्टम के कुछ समय पहले चेतना आ गई और वह उठ कर बैठ गया। उसने पानी मांगा तो वहां मौजूद लोग भौच्चके रह गए थे।

तीन माह पूर्व कोलकाता में जिस बच्चे को एक बड़े अस्पताल में मृत घोषित कर दिया था, वह अब पूरी तरह स्वस्थ है और अस्पताल से उसे जल्द छुट्टी मिलने वाली है।

ये लोग इतनी मेहनत से क्यों काम करते हैं कि जिंदा इंसान को भी मुर्दा बनाने से गुरेज नहीं करते। पता नहीं सरकार इनकी ओर क्यों ध्यान नहीं देती। अरे यहीं तो भारत रत्‍‌न के हकदार हैं। देश को महान बनाने में इनका अहम योगदान भी तो रहा है।

Friday, September 26, 2008

मिलावट रुके भी तो कैसे ?

मिलावट दरअसल इसलिए रुकने का नाम नहीं ले रही है क्योंकि जो मिलावट करते हैं, उनके पास भी तो तर्क रहता है कि आखिर वह ऐसा नेक काम क्यों करते हैं।

मिलावट करने वालों के मुताबिक अगर वह दूध में पानी नहीं मिलाएंगे तो जो लोग इसका सेवन करेंगे उनका हाजमा खराब हो जाएगा। और फिर बाढ़ के पानी की खपत भी तो करनी है। फिर पानी को चाहे ही जिस चीज में मिला दो वह उसी के रंग में मिल भी तो जाता है।

अगर किसी शहरी को शुद्ध देशी घी खिला दिया जाए तो क्या वह हजम कर पाएगा? चूंकि मिलावट करने वालों को तो हर किसी की सेहत का ख्याल रखना होता है। शायद इसीलिए ये घी में डालडा व गाय की चर्बी तक भी मिलाने से गुरेज नहीं करते हैं।


दरअसल, जनता के स्वास्थ्य की हिफाजत करने की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग की है, लेकिन खाद्य पदार्थो में मिलावट की रोकथाम के लिए अभी तक ऐसा कोई अभियान नहीं चलाया गया, जिससे लोगों को लगे कि वास्तव में उसे जनता के स्वास्थ्य की परवाह है। मिलावटयुक्त खाद्य पदार्थो के सेवन से बीमारी फैलने की आशंका के बावजूद इस संबंध में रोकथाम के समुचित प्रयास न होने से विभागीय कार्यकुशलता पर प्रश्नचिह्न लग रहा है।

ऐसा नहीं है कि केवल त्योहारों के मौसम में ही खाद्य पदार्थो में मिलावट के मामलों में बढ़ोतरी होती है, बल्कि यह गोरखधंधा साल भर चलता रहता है और इसकी जानकारी विभाग को भी रहती है। लेकिन ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई न होने से ऐसी घटनाओं पर विराम लगाने में मुश्किल आ रही है।

नगर निगम हो या उपभोक्ता व जन वितरण विभाग, सभी का काम केवल नमूने भरने तक ही सीमित है। बाद में दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है, यह किसी की जानकारी में नहीं रहता। यदि कोई मिलावट करने वाला पकड़ा भी जाता है तो वह ठोस साक्ष्यों के अभाव में आसानी से छूट जाता है।

मिलावट की रोकथाम के लिए यह आवश्यक है कि संबंधित विभाग और पुलिस लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वालों से पूरी गंभीरता से निपटे। त्योहारों पर विशेष रूप से मिठाइयों और दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता पर विशेष रूप से नजर रखना जरूरी है।

Wednesday, September 24, 2008

ये कैसे रईस?


अमीरों को भले ही गरीबों की सोहबत पसंद न हो, पर उनके लिए आवंटित राशन हथियाने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है। यानी ये लोग कहने को तो रईस होते हैं, पर राशन डकार जाते हैं गरीबों का। यह राशन बिना डकारे ही इन्हें हजम भी हो जाता है।

हम बात कर रहे हैं बीपीएल योजना की। इस योजना के तहत केंद्र सरकार गरीबों रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों के लिए सस्ते दामों पर राशन मुहैया करवाती है। जो शहरी लोग 538.60 रुपये प्रति माह से कम खर्च करते हैं, उन्हें बीपीएल में शामिल किया जाता है।

इसी प्रकार जो ग्रामीण 356.35 रुपये प्रति माह से कम खर्च करते हैं, उन्हें भी इसी सूची में रखा जाता है। इन परिवारों को चावल 5.65 रुपये प्रति किलो व गेहूं 4.15 रुपये प्रति किलो के हिसाब से दिया जाता है। देश में करीब साढ़े छह करोड़ परिवार बीपीएल के तहत आते हैं।


इस योजना में इनकम टैक्स अदा करने वाले, करोड़ों रुपये की जमीन के मालिक, दुकानदार व अन्य ऊंची पहुंच वाले तो शामिल हो जाते हैं, पर जो वाकई गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, वह इस योजना का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं।

Monday, September 22, 2008

ये कैसा सलूक ?

देशभक्ति व कर्तव्यपरायणता की मिसाल बन गए दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर शहीद मोहन चंद्र शर्मा। मगर इसके बदले में सोमवार को आईटीओ स्थित हिंदी भवन में एक समारोह के दौरान उनके परिजनों के साथ किए गए सलूक की जितनी भी निंदा की जाए वो कम है।

यह कार्यक्रम शहीद शर्मा को ही श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए किया गया था, मगर उनके परिजनों को मंच पर बुलाया तो गया लेकिन उन्हें न तो मंच पर जगह मिली और न ही बाद में नीचे बैठने के लिए कुर्सियां। ऐसे में उन्हें मंच की सीढि़यों पर बैठना पड़ा।

इस दौरान शहीद के परिजनों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूरी से उनके (मोहन चंद्र शर्मा) नाम पर गांव में सड़क व स्मारक बनाने की मांग की, लेकिन उन्होंने भी इस मांग की नजरंदाज कर दिया।

Sunday, September 21, 2008

गुरूजी की फुर्ती


आठवीं की छात्रा की लूटते रहे आबरू
कोई और नहीं ये हैं कलियुग के गुरू
पहले तो हवस मिटाते रहे
फिर गर्भनिरोधक गोलियां खिलाते रहे
अब छात्रा है अस्पताल में भर्ती
और गुरूजी ने भागकर दिखाई फुर्ती.

Wednesday, September 17, 2008

ये कैसे गुरू ?

पहले तो बहलाया-फुसलाया
फिर दो छात्राओं को भगाया
कभी जान से मारने के लिए धमकाया
तो कभी फेल करने के लिए डराया
उनकी हर मजबूरी का फायदा उठाया
ये कैसे गुरू ?
लूट ली छात्राओं की आबरू
पत्‍‌नी ने भी तो साथ निभाया
ये कैसा घोर कलियुग आया.

Tuesday, September 16, 2008

क्या बोझ हूं मैं?

मां को भगवान ने छीन लिया
बाप स्वर्ण मंदिर में छोड़ गया
अगर ये बोझ न होतीं
तो आज क्यों रोतीं
क्योंकि ये बेटियां थीं
तभी तो बाप को अखरती थीं
भाई को तो अपना लिया
मुझे क्यों ठुकरा दिया
कहां मिलेगा वो दुलार
अपनों का प्यार
पापा क्या बोझ हूं मैं
क्यों छोड़ दिया मुझे.

Saturday, September 13, 2008

फ़िर बेखौफ घूमेंगे दरिंदे

पहले ई-मेल से धमकाया
फ़िर दिल्ली को दहलाया
20 लोगों ने गंवाई जान
अब नेता देंगे बयान
देश की राजधानी है कितनी महफूज
जहां हर अपराधी को है सकून
अब कोई जताएगा अफ़सोस
तो कोई कहेगा दुखद है
और कोई करेगा निंदा
1-2 दिन भले ही पर न मारे परिंदे
फ़िर बेखोफ घूमेंगे दरिंदे.

Thursday, September 11, 2008

शुक्र है ! बच गए !!

ये चैनल वालों कब, किस बात को लेकर सनसनी फैला दें। कुछ कहा नहीं जा सकता। हद तो तब हो गई, जब कुछ चैनल यह कहकर सनसनी फैलाते दिखे कि अब दुनिया खत्म हो जाएगी। हालांकि दुनिया तो नहीं खत्म हुई पर कुछ लोगों को मारे दहशत के अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। वहीं, कुछ लोगों को मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ा। कुछ लोग विनाश को टालने के लिए दिनभर पूजा-पाठ करते रहे। वैज्ञानिक जहां खुशी से झूमते रहे, वहीं लोग अपने घरों में ही दुबके रहे। जब महाप्रलय की बात झूठ साहिब हुई तो लोगों ने चैन की सांस ली और ईश्वर का शुक्रिया अदा किया।

आखिर चैनल वालों की भी तो मजबूरी है कि रोज-रोज क्या नया दिखाएं, जिससे दर्शक जुड़े रहें। अब देखिए ये दिखाते क्या हैं। अगर राहुल ने दाल-पूड़ी और सब्जी खा ली तो इस न्यूज को घंटों प्रसारित करते हैं। कभी अगर कोई बिल्ली छज्जे पर फंस जाती है तो उसको भी ये चैनल वाले खूब दिखाते हैं। कभी अमिताभ बच्चन को ठंड लगी तो उसको भी खूब दिखाते हैं। कभी दिल्ली में कमिश्नर साहब का कुत्ता मिला जैसी खबरें दिनभर प्रसारित होती रहती हैं।

Sunday, September 7, 2008

बोलने दो राज

वो हिंदी में बोलते हैं, तो बोलने दो राज
क्यों कर रहे हो एतराज
हिंद के लोग अगर हिंदी में नहीं करेंगे बात
तो एक-दूसरे के कैसे समझेंगे जज्बात
जया के बयान को मत समझो अपमान
जनाब ! एक माह तो बंद रखनी ही पड़ेगी जुबान.

Thursday, September 4, 2008

ये कैसा करार

करार ने फिर किया बेकरार
सवालों के घेरे में सरकार
विरोधियों को मिला हथियार
जनाब ये कैसा किया करार.

Tuesday, September 2, 2008

कहां जाएं लाचार

एक ओर कोसी की धार
दूसरी ओर लुटेरों की कतार
भूख से बिलखते उनके लाल
फिर भी नहीं बख्श रहे दलाल
चल रही सियासी रार
कहां जाएं लाचार.