ये कैसे नेता
नेताओं ने शायद यह ठान ही लिया है कि हम नहीं सुधरेंगे। तभी तो वो किसी न किसी बहाने आए दिन चर्चा में बने रहना चाहते हैं। भले ही ये जम्हूरियत में कहते हैं कि जनता ही जनार्दन होती है। आप और हम भगवान होते हैं, लेकिन ये कहने की बात है। असल में ऐसा होता नहीं है। जिस दिन बटन दबाना होता है, उस दिन हम बादशाह होते हैं, लेकिन बटन दबाने के फौरन बाद ये बादशाहत खत्म हो जाती है और हमारे बादशाह बन जाते हैं हमारे प्रतिनिधि, हमारे नेता। लेकिन यहां तो नजारा कुछ और ही है। नेताओं का वोटरों को पटाने के लिए रिश्वत देना कोई नई बात नहीं है, लेकिन बंगलूरु महानगर पालिका चुनावों के दौरान एक नेता ने तो हद ही कर दी। यहां मतदान वाले दिन ही नोट बांट रहे इस नेता ने एक महिला वोटर के ब्लाउज में ही पैसे डाल दिए। ऐसे नेताओं के साथ क्या सलूक होना चाहिए? कब सुधरेंगे ये नेता?
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2 Comments:
तस्विर गन्द है. बचना चहिये.
इन के शक्लो और कारगुजारी के प्रति मीडिया में समझ पैदा हो जाऐ सब सुधर जाऐगें
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