Saturday, March 13, 2010

तो अकेली न जाएं महिलाएं

आजकल साधु-संतों को न जाने क्या हो गया है जो वह हमेशा चर्चा में बने रहना ही चाहते हैं। वे खुद का तो आचरण व व्यवहार सुधारने से रहे, पर दूसरों से इसे सुधारने की नसीहत जरूर दे देते हैं।

एक ओर तो संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने की बात हो रही है। महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने की भी बात हो रही है, वहीं-साधु-संत उन्हें कुछ और ही नसीहत दे रहे हैं।

महिलाओं को ज्यादा स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए। महिलाओं को मंदिरों में भी अकेले जाने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। यह कहना है रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास का। इनका कहना है कि महिलाएं जब भी मंदिर में जाएं अपने परिवार वालों को साथ लेकर जाएं। पर महिलाओं को मठ, मंदिर में जाने से रोकना क्या उनका अपमान करना नहीं है।

संत समाज की सोच ऐसी है कि वह खुद को पुरुष समझने लगे हैं, जबकि उनके पास आने वाली महिलाएं उन्हें विग्रह (ईश्वर) मानती हैं। हां, इतना जरूर है कि मठ-मंदिर में कोई अकेली महिला अगर रुके तो पहले उसके परिजनों के बारे में जानकारी जरूर कर ली जाए। उच्छृंखल महिलाओं को निश्चित रूप से मठ और मंदिर में ठहरने से रोका जाए।

साधु, अब साधु नहीं रह गए हैं। बड़े महलों में रहना और महंगे वाहन में चलना उनका शौक बन चुका है। जो महिलाएं या युवतियां संतों के संपर्क में आती हैं, वे धन की लालसा में आती हैं। वजह साफ है कि संत आज खुद धन की ओर भाग रहे हैं। साधुओं का धर्म है कि वे शासित रहें। पर ऐसा हो तब न।

1 Comments:

At August 14, 2013 at 9:41 PM , Anonymous Anonymous said...

bhi dam hai

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home