Saturday, July 25, 2009

जरा याद करो कुर्बानी


शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा.. इन पंक्तियों को लिखने वाले अमर शहीद रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने कभी नहीं सोचा होगा कि शहीदों के नाम पर सरकारें सिर्फ घोषणाओं तक ही सीमित रहेंगी। कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए जांबाजों की शहादत पर तो सभी इतराते हैं, परंतु कइयों के नाम पर की गई घोषणाएं अब भी अधूरी हैं। अब शायद ही ये घोषणाएं पूरी हों। स्मारक खस्ताहाल हैं, हालत यह है कि सिर्फ शहीदों के परिजन ही वहां दीप जलाकर अपने चिराग को याद करते हैं। लगता है जैसे बाकी लोगो की स्मृतियां धुंधली पड़ चुकी हों।

26 जुलाई 1999 का दिन देश के लिए एक ऐसा गौरव लेकर आया था, जब हमने विश्व के सामने अपनी विजय का बिगुल बजाया था। इस दिन सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था। इसी की याद में ‘26 जुलाई’ अब हर वर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने का, जो हंसते-हंसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया।

1999 में जब कारगिल की लड़ाई छिड़ी थी और द्रास-कारगिल में बर्फ की सफेद पट्टियां वीर जांबाजों के खून से लाल हो रही थीं, उस दौरान भी हमारे नेता आम चुनाव के नफा-नुकसान का आकलन कर रहे थे। सिलसिला आज भी वही है। भले ही कारगिल फतह के दस वर्ष बीत गए। शहीदों को सरमाथे पर रख गुणगान करने वालों को अब उनकी कोई याद नहीं। शहीदों के नाम पर बनीं सड़कें और स्कूल बदहाल हैं। जिन शहीदों के नाम पर बनीं सड़कों को सरकारी दस्तावेजों में भी जगह नहीं मिल पाई है। यह अभी भी पुराने नामों से ही जानी जाती हैं। ऐसे में यह हैरत की बात नहीं कि भावी पीढ़ी इन शहीदों के नाम से भी अंजान हो जाए।

4 Comments:

At July 25, 2009 at 11:42 PM , Blogger चन्दन कुमार said...

lekin hum sirf unhe isi time kyon yad karte hain, sath hi zarurat hai unki bakidaniyon ko samajhne ki bhi

 
At July 26, 2009 at 1:54 AM , Blogger डा० अमर कुमार said...


" शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा.. इन पंक्तियों को लिखने वाले शायर... "

यह लाइनें किसी शायर ने नहीं बल्कि, स्व० रामप्रसाद बिस्मिल ने स्वयँ ही लिखी थी । जब उन्हें ही लोग भुला देना चाहते हैं, तो इन शहीदों की कौन कहे ?

 
At July 26, 2009 at 11:09 AM , Blogger Anil Pusadkar said...

देश की रक्षा करते हुये अपनी जान कुर्बान कर देने वाले अमर शहीदो को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

 
At July 26, 2009 at 3:57 PM , Blogger Udan Tashtari said...

अमर शहीदों को नमन.

 

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