Sunday, January 4, 2009

लूट सको तो लूट लो (5)

भोले-भाले यात्रियों को किस तरह लूटा जाता है, यह कोई बस कंडक्टरों से सीखे। भले ही इन्हें मोटी पगार मिलती हो पर जब तक ये भोले-भोले यात्रियों से पैसे नहीं ऐंठ लेते हैं, तब तक इन्हें सकून नहीं मिलता है। अन्य परिवहन डिपो की बसों में भले ही कंडक्टर यात्रियों के पास जाकर टिकट बना देता हो, और शेष बचे उनके पैसे भी लौटा देता हो। पर उत्तर प्रदेश परिवहन की अधिकांश बसों में न तो कंडक्टर यात्रियों के पास जाकर टिकट बनाते हैं और न ही उन्हें शेष पैसे वापस लौटाते हैं। हां, टिकट पर पीछे शेष बचे पैसे जरूर लिख देते हैं। ऐसा नहीं कि इनके पास खुले पैसे नहीं होते हैं, पर अगर ये पैसे लौटा देंगे तो फिर कमाई कैसे करेंगे?

इनकी यह कोशिश रहती है कि कुछ को तो याद भी नहीं रहेगा कि उन्हें वापस पैसे लेने भी हैं, और कुछ को यह कहकर चुप करा दिया जाएगा कि खुले पैसे ही नहीं है। जिनके पास खुले पैसे होंगे उन्हें तो शेष बचे पैसे लौटाने ही पड़ेंगे। अन्य परिवहन डिपो की बसों के टिकट में भले ही इस बात का जिक्र होता हो कि यहां से यहां तक का टिकट इतने का है, पर इस परिवहन डिपो के टिकटों में वो भी नहीं दिखता है। सिर्फ इतना ही लिखा होता है कि इतने से इतने तक का टिकट। यानी किसी यात्री का टिकट अगर दो सौ पचपन रुपये का है तो उसे जो टिकट दिया जाएगा, उस पर लिखा होगा दो सौ पचास से तीन सौ रुपये तक का टिकट।

इसी के चलते कुछ यात्रियों को तो दो सौ पचपन के टिकट के बदले तीन सौ रुपये तक देने पड़ जाते हैं। क्योंकि कंडक्टर कह देते हैं कि तीन सौ का टिकट है। और यात्रियों की मजबूरी का फायदा उठाने से भी बस कंडक्टर बाज नहीं आते हैं। अगर किसी के पास ज्यादा सामान है तो उसके पैसे तो ये ले लेते हैं, पर टिकट नहीं देते। इसी तरह कम दूरी की यात्रा करने वाले अधिकांश यात्रियों से भी ज्यादा पैसे लिए जाते हैं, और टिकट भी नहीं दिया जाता। अगर कभी-कभार चेकिंग हो भी जाए तो कह दिया जाता है कि ये यात्री तो अभी यहीं से बैठे हैं, और इनका टिकट तो बनाया जा रहा है।

चूंकि देर रात और सुबह तड़के कम बसें चलती हैं, इस कारण जिन यात्रियों को जाने की मजबूरी होती है उन्हें जितने का टिकट होता है, उससे दो से तीन गुना तक भी पैसे देने पड़ जाते हैं। अगर किसी यात्री से ज्यादा पैसे वसूले जाते हैं। या फिर उससे पैसे भी ले लिए जाते हैं और टिकट नहीं दिया जाता तो कोई भी उसके हक में जुबां खोलने को तैयार नहींहोता है। इसलिए कि हम क्यों इनके विवाद में पड़ें। ये शायद यह भूल जाते हैं कि आज जो इनके साथ हो रहा है कल मेरे या मेरे किसी परिजन या मित्र के साथ भी हो सकता है। फिर क्या करेंगे?

[क्रमश:]

2 Comments:

At January 4, 2009 at 10:44 PM , Blogger राज भाटिय़ा said...

अरे राम राम यह भी खुब लूट है पहले से ही पुरे पेसे ले कर चढॊ बाबा.तभी इस लूट से बच सकते हो

 
At January 5, 2009 at 8:07 PM , Blogger समयचक्र said...

सही कह रहे है ये लोग मौका पाकर लूटने में कोई कसर नही छोड़ते है .

 

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