Thursday, January 1, 2009

लूट सको तो लूट लो (3)

उनका कसूर यहीं है कि वह आम हैं और जब आम हैं तो उसका खामियाजा तो भुगतना पड़ेगा ही। अगर वे इस खामियाजे को भुगतने से बचना चाहते हैं तो फिर खास बनें, नहीं तो भुगतते रहें खामियाजा। लुटते रहें जगह-जगह...

रेलवे स्टेशन पर एक बुजुर्ग काफी देर से लाइन में टिकट कटाने के लिए खड़ा था। और जब उसका नंबर आया तो खिड़की के अंदर से आवाज आई पैसे खुले दो। बुजुर्ग ने जवाब दिया, पैसे खुले नहीं है। अंदर से फिर आवाज आई पैसे खुले नहीं हैं तो टिकट नहीं मिलेगा, चलो पीछे हटो..पता नहीं कहां-कहां से चले आते हैं।

बुजुर्ग ने कहा, अरे बाबू जल्दी टिकट दे दो नहीं तो ट्रेन छूट जाएगी। फिर खिड़की के अंदर से आवाज आई ट्रेन छूटे या रहे जब तक खुले पैसे लाकर नहीं दोगे, तब तक टिकट नहीं मिलेगा। बुजुर्ग काफी देर तक मिन्नतें करता रहा..फिर थक-हार कर बोला अरे बाबू दे दो न टिकट। खिड़की के अंदर से आवाज आई पैसे लाओ। बुजुर्ग ने सौ रुपये का नोट दिया। खिड़की के अंदर से टिकट के साथ पचास रुपये वापस कर दिए गए।

बुजुर्ग बोला, बाबू जी टिकट तो इकतालीस रुपये का है और आपने मुझे वापसे किए हैं, सिर्फ पचास रुपये बाकी के नौ रुपये कहां हैं? खिड़की के अंदर से आवाज आई एक रुपया दो तो मैं नौ रुपये लौटा दूं। चूंकि बुजुर्ग के पास एक रुपया नहीं था, इसलिए उसे नौ रुपये गंवाने पड़े। अगर वह टिकट वापस करता तो उसे और नुकसान उठाना पड़ता। क्योंकि अनारक्षित टिकट वापस करने के बीस या तीस रुपये कटते हैं।

ऐसा नहीं कि ये बुजुर्ग था, इसलिए उससे रुपये ऐंठ लिए गए। न जाने कितने लोगों से इसी तरह रुपये ऐंठे जाते हैं। ऐसा नहीं है कि टिकट देने वालों के पास खुले पैसे नहीं होते हैं, सब कुछ होता है। मोटी पगार भी मिलती है, फिर भी गरीबों की खून-पसीने की कमाई पर ये नजरें गड़ाए रहते हैं। और इन्हें सब हजम भी हो जाता है।
[क्रमश:]

3 Comments:

At January 1, 2009 at 11:29 PM , Blogger पुरुषोत्तम कुमार said...

सचिन बहुत अच्छा लिख रहे हैं। शुभकामनाएं।

 
At January 2, 2009 at 12:54 AM , Blogger Dr. Ashok Kumar Mishra said...

such ko prabhavshali treekey sey likha hai.

 
At January 2, 2009 at 3:29 AM , Blogger राज भाटिय़ा said...

एक बार मेरे साथ ऎसा ही हुया, पोस्ट ओफ़िस मै मै तीन बार लाईन मै लगा, तीसरी बार बाबू बोले रुको मै चाय पी कर आता हुं. ओर मेने जितनी भी मुझे गालिया आती थी उस बाबु को दे दी ओर जोर जोर से उस से बोलने लगा, ओर मेरे पीछे खडे लोग भी मेरे साथ साथ उस बाबू को खुब खरी खोटी सुनाने लगे,
तो बाबु जी ने मेरे से हाथ जोड कर माफ़ी मांगी , लेकिन मेने भी सारी कसर निकाली ओर उस की रिपोर्ट कर के ही दम लिया, हम सब को ऎसा ही करना चाहिये तभी .... मेने ८९ रुप्ये की टिकट लेनी थी, ओर उस के पास खुले भी थे, लेकिन...

नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
धन्यवाद

 

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