संत-संयम और शर्म
जिस तरह हाथी के दांत दिखाने के लिए और होते हैं और खाने के लिए और, ठीक उसी तरह होते हैं संत। ये दूसरों को तो उपदेश देते फिरते हैं कि तुम ऐसा करो-वैसा करो, और खुद क्या कुछ नहीं करते। दिखावे के लिए भले ही ये लंबा तिलक लगात हों, लाल-पीले कपड़े पहनते हों पर न तो ये मन पर काबू पा सकते हैं और न ही इंद्रियों पर। कुछ ऐसे भी हैं जो जिम्मेदारी तो निभा नहीं सके और बन गए संत। न तो आचरण सही है न ही संयम है और न ही शर्म, फिर भी बन गए। ऐसे में ये भगवान के नाम पर दुकानदारी नहीं चलाएंगे तो और क्या करेंगे?
हां, मैंने अपने ही कई भक्तों से शारीरिक संबंध बनाए। मैंने बेडरूम में हिडन कैमरे लगा रखे थे। मैंने जिन महिला भक्तों की ब्लू फिल्म बनाई, उनको इसका पता नहीं चलता था। मुझे ये भी याद नहींकि मैंने कितनी महिला भक्तों से संबंध बनाए। हां, इनमें से अधिकतर विधवा महिलाएं थीं, जो सांत्वना के लिए मेरे पास आती थीं।
ये सब कबूल किया है शंकराचार्य दयानंद ने। इन्होंने ये सब गुल खिलाने से पहले ये भी नहींसोचा कि ऊपर वाले को क्या जवाब देंगे? ऐसा नहीं कि सभी संत दयानंद जैसे ही कारनामें करते हों, पर अधिकतर तो हैं ही।
जिस भारतभूमि में कभी मंत्र गूंजते थे, वहीं आज तथाकथित संतों की करतूतों को सुन-सुन कर सिर शर्म से झुक जाता है।
6 Comments:
Saty vachan maharaaj ji . abhaar
जिस क्षण इन तथाकथित संतों को पता चले कि शाम की रोटी का इंतजाम नहीं हो पायेगा उसी क्षण सारी संताई हवा हो जाये। पर हर समय आगत से भयभीत लोगों की कमजोरी इनका वर्तमान सजाये रहती है।
समाज में सब प्रकार के प्राणी है। संतो के प्रति हमारी अस्थाएं है। उनसे हम एेसी अपेक्षा नही करते।
सत्य वचन महाराज ।
samay ke sath satik tippadi hai apaki badhai ho sir...
बिलकुल सही कहा आप ने, मुझे किसी भी एक संत का नाम बता दो जो असल मे महान हो.... सारे कमीने है.... कोई भी किसी एक संत का नाम बता दे
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