Monday, November 17, 2008

हम नहीं सुधरेंगे

राष्ट्रीय राजधानी कितनी महफूज है यह तो सभी जानते हैं, फिर उसकी सीमा से सटे इलाके कितने महफूज होंगे यह बताने की जरूरत नहीं है।

अगर ऐसा न होता तो सोमवार को दिनदहाड़े दिल्ली में स्टेट बैंक आफ बीकानेर एंड जयपुर से 23 लाख अस्सी हजार रुपये न लूट लिए जाते। और न ही राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र के साहिबाबाद में एचडीएफसी बैंक के बाहर पेट्रोल पंप कर्मी को गोली मारकर उससे साढ़े छह लाख रुपये लूटे गए होते।

बैंक भले ही आए दिन लूटे जा रहे हों, फिर भी कुछ बैंक रामभरोसे छोड़ दिए जाते हैं। शायद, इसलिए कि लुटेरों को किसी प्रकार की दिक्कत न हो। बैंक में न तो सुरक्षा गार्ड की जरूरत नहीं होती है, और न ही सीसीटीवी कैमरे लगाने की।

अगर होती तो बवाना-बादली रोड पर बादली औद्योगिक क्षेत्र स्थित स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर लूट की यह वारदात न होती। हो सकता है कि कोई बैंककर्मी ही इस घटना में संलिप्त हो, पर बैंक की सुरक्षा में कोताही नहीं बरतनी चाहिए थी।

इस बैंक में मात्र एक सुरक्षाकर्मी तैनात है। वह भी छुट्टी पर था। जब वह छुट्टी पर था तो बैंक को सुरक्षा के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए थी। मगर इसकी जरूरत नहीं समझी गई। अगर समझी जाती तो शायद लूट न होती। यदि बदमाशों की गोली से कोई बैंक कर्मी या ग्राहक की जान चली जाती तो इसका जिम्मेदार कौन होता?

पुलिस की लापरवाही भी किसी से छिपी नहीं है,अगर ऐसा न होता तो क्या बाइक सवार दो बदमाश दूसरी घटना को अंजाम दे पाते। कब तक होती रहेंगी, इस तरह की वारदातें? और हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी पुलिस?

5 Comments:

At November 18, 2008 at 12:30 AM , Blogger Anil Pusadkar said...

पुलिस हाथ पर हाथ धरे नही बैठती वो तो दोनो हाथो से नोट बटोरती है।

 
At November 18, 2008 at 2:58 AM , Blogger राज भाटिय़ा said...

मेरा भारत राम भरोसे

 
At November 18, 2008 at 12:27 PM , Blogger seema gupta said...

" oh, sach kha aab to sub kuch upper wale ke hath hai, .."

regards

 
At November 18, 2008 at 10:32 PM , Blogger चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

भई, हर बात में पुलिस को ज़िम्मेदार ठहराना कहां का न्याय है। आप दस पुलिसवाले खडा कर देंगे, ग्यारह लुटेरे आ जाएंगे! भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी ज़िम्मेदार है इन वारदातों के पीछे। इनका कौन ज़िम्मेदार है - यह भी मैं ही बताऊँ:)

 
At November 19, 2008 at 11:31 PM , Blogger pran sharma said...

Sahee kahte ho bhaee-"hum nahin
sudhrenge".Hum ,tum aur sab shamil
hain ismein.

 

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