क्या नाम दूं?
जिनकी वे पूजा करते हैं, उनके बताए मार्ग पर चलते हैं। उनके एक इशारे पर मरने मारने को तैयार हो जाते हैं। शायद उन्हें यह नहीं मालूम कि जिनके प्रति उनमें इतनी आस्था है, उनका दामन कितना पाक-साफ है? और वे क्या गुल खिलाते हैं? दरअसल ये तो अपनी ही महिला भक्तों की आबरू लूटते हैं, उनकी ब्लू फिल्म बनाते हैं।
अभी कुछ दिन पहले शंकराचार्य दयानंद पांडे ने खुद कबूल किया था कि हां, मैंने अपने ही कई भक्तों से शारीरिक संबंध बनाए। मैंने बेडरूम में हिडन कैमरे लगा रखे थे। मैंने जिन महिला भक्तों की ब्लू फिल्म बनाई, उनको इसका पता नहीं चलता था। मुझे ये भी याद नहीं कि मैंने कितनी महिला भक्तों से संबंध बनाए। हां, इनमें से अधिकतर विधवा महिलाएं थीं, जो सांत्वना के लिए मेरे पास आती थीं।
अब इन करतूतों की चाहे जो भी इन्हें सजा मिले पर वह नाकाफी ही होगी।
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत गुरमीत सिंह राम रहीम, जिनके एक इशारे पर हजारों भक्त मरने-मारने को हरदम तैयार रहते हैं..पर डेरा अनुयायी रंजीत और पत्रकार रामचंद छत्रपति हत्याकांड में आरोप तय कर दिए गए हैं। साथ ही, यौन शोषण मामले में एक गवाह के भी बयान दर्ज किए गए हैं।
ये उस समय चर्चा में आए थे जब एक पंजाबी अखबार में छपे विज्ञापन में डेरा प्रमुख को दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह की वेशभूषा पहने दिखाया गया था। इस पर सिखों ने कड़ा ऐतराज जताया था। बाद में इसी को लेकर विवाद भड़क गया था। विरोध की इस चिंगारी ने कई प्रांतों को झुलसाकर रख दिया था।
जिनमें हजारों लोगों की आस्था है, जब उनके ऐसे कृत्य होंगे तो अपराधी और इनमें अंतर ही क्या रहेगा? अपराधी तो फिर भी इनसे अच्छे हैं जो खुलेआम आपराधिक घटनाओं को अंजाम तो देते हैं और ये क्या कुछ नहीं करते? फिर भी लोगों की आस्था से खेलते रहते। इनको क्या नाम दूं?
4 Comments:
apke vicharo se sahamat hun mishra ji . dhanyawad.
अच्छा िलखा है आपने ।
ओर यह महिलये भी तो खुद जाती है, क्या वो छोटी बच्चिया है, अजी ताली दोनो हाठो से बजती है, फ़िर यह महिलये बोलती क्यो नही??? दोषी दोनो है, लेकिन बाबा को सीधा चोराहे पर खडा कर के.*.*...
धन्यवाद
बात तो आपने ठीक कही...लेकिन कभी यह भी सोचा है की इसके लिए हम सब कर क्या रहें हैं ! यह हमारी ही धर्म भीरुता है कि इतन सब कुछ होने और फ़िर मिडिया के ज़रिये रौशनी में आने के बाद भी , हर रोज़ नए नए बाबा लोग अपनी दुकाने खोलते ही जा रहे हैं !
क्या वास्तव में दोषी यह लोग ही हैं ???
कभी देखा है इन बाबा लोगों कि चलती हुई दुकानों का नज़ारा ? एक तरफ़ - कहीं कोई आसाराम बापू तो कहीं सुधान्शुजी महाराज ....कहीं बाबा राम रहीम तो कहीं भाई किरीट ( जो एक चुटकी बजाते ही ब्लैक के सौ करोड़ को व्हाइट में बदल देने का दम रखते हैं ) ....और दूसरी तरफ़ हजारों नही लाखो लोगों कि भीड़ ! अच्छे भले पड़े लिखे लोग किस तरह से बेवकूफ बन रहे होते हैं.... यह नज़ारा देखते ही बनता है ! औरतें अपने पति देव से भले शर्माती लजाती हों...इन बाबा लोगों के सामने सारी मान मर्यादा ताक पर रख कर उछलने ...नाचने गाने से कोई परहेज़ नही करी...." पग घुंगरू बाँध मीरा नाची रे..." ( और बाबा बन गए रास बिहारी ....भजो राधे गोविन्द- मेरा दोहा तेरा छंद - भजो राधे गोविन्द )
ऐसे में जो इन् आँख वाले अंधों और दिमाग वाले मूर्खों का फायदा ना उठाये वो निरा गधा ही होगा !
सो जनाब यह सिलसिला तो यूँ ही चलता रहेगा जब तक हमें अक्ल नहीं आ जाती.....!
बाकी ऐसा विषय उठाने के लिए साधुवाद !!!!
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