भले ही जगह-जगह यह लिखा हुआ मिल जाए कि दुर्घटना से देर भली घर पर बच्चे आप की प्रतीक्षा में होंगे...मगर इन्हें जो अपनी जान से जरा सा भी प्यार होता या फिर परिजनों की चिंता होती तो क्या ऐसे जान-जोखिम में डाल कर सफर करते? फिर भी हम तो यहीं दुआ करते है कि ये सही-सलामत अपनी मंजिल तक पहुंच जाएं।
4 Comments:
हद हो गई भाई!!
वो सब कुछ तो ठीक है.....मगर भाई जी इसमें हमें तो ढूँढ कर दिखाईये......हिंट्स....ब्लू शर्ट....काली पैंट....!!
क्यो सुधरे ? क्या जरुरत है जी... हम सब आजाद है
बिल्कुल नहीं सुधरेंगे जी...वो आप ने कुत्ते की पूँछ वाली कहावत तो जरूर सुनी होगी। बिल्कुल वैसा ही मामला है।
सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानी......
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home