Tuesday, September 16, 2008

क्या बोझ हूं मैं?

मां को भगवान ने छीन लिया
बाप स्वर्ण मंदिर में छोड़ गया
अगर ये बोझ न होतीं
तो आज क्यों रोतीं
क्योंकि ये बेटियां थीं
तभी तो बाप को अखरती थीं
भाई को तो अपना लिया
मुझे क्यों ठुकरा दिया
कहां मिलेगा वो दुलार
अपनों का प्यार
पापा क्या बोझ हूं मैं
क्यों छोड़ दिया मुझे.

5 Comments:

At September 16, 2008 at 9:39 PM , Blogger ताऊ रामपुरिया said...

पापा क्या बोझ हूं मैं
क्यों छोड़ दिया मुझे.


भाई सचिन जी बहुत मार्मिक कविता है !
बहुत धन्यवाद आपको !

 
At September 17, 2008 at 2:09 AM , Blogger राज भाटिय़ा said...

बहुत ही भावुक,
धन्यवाद

 
At September 17, 2008 at 5:09 AM , Blogger Udan Tashtari said...

अति मार्मिक.

 
At September 17, 2008 at 9:03 AM , Blogger seema gupta said...

पापा क्या बोझ हूं मैं
क्यों छोड़ दिया मुझे.
" very heart touching"
Regards

 
At September 17, 2008 at 1:41 PM , Blogger pallavi trivedi said...

karun kavita...

 

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