Saturday, August 30, 2008

तबाही का मंजर

पहले कोसी ने ढाया कहर
अब महामारी फैलने का डर
जिंदगी और मौत के बीच छिड़ी है जंग
दाने-दाने को मोहताज हैं लोग
हर तरफ है तबाही का मंजर
इंसानियत भी हुई तार-तार
लूटपाट और कालाबाजारी ने तोड़ी लोगों की कमर
पहले से ही टूट चुके लोगों पर लुटेरे ढा रहे हैं कहर
जंग सिर्फ मौत के सैलाब से नहीं, जिंदा नरपिशाचों से भी है
और बाढ़ के बाद महामारी से निपटने की चुनौती भी तो है.

3 Comments:

At August 30, 2008 at 10:11 PM , Blogger Waterfox said...

बहुत खूब कहा सचिन भाई.
ज़िन्दा नर पिशाच!

 
At August 30, 2008 at 10:22 PM , Blogger महेन्द्र मिश्र said...

bahut hi samayik rachana .

 
At August 31, 2008 at 4:12 AM , Blogger राज भाटिय़ा said...

क्या ऎसे समय भी इन पिशाचो को तरस नही आता दुखी लोगो पर ?

 

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