Thursday, August 28, 2008

क्योंकि मैं लड़की हूं

किसी ने कोख में खत्म कर दिया
किसी ने पंगूड़ा में छोड़ दिया
किसी ने मेरे जन्म पर खाना ही छोड़ दिया
सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं लड़की हूं
इसमें उनका कोई कसूर नहीं
कसूरवार तो मैं हूं
क्योंकि मैं लड़की हूं
भाई शहर में पढ़ेगा, मैं घर से निकलूंगी तो कोई देख लेगा
मैं उनका नाम थोड़े ही रोशन करूंगी
रूखा-सूखा खाकर भी भाई से मोटी हूं
दिन-दूने, रात चौगुने बढ़ती हूं
क्योंकि मैं लड़की हूं.

6 Comments:

At August 28, 2008 at 6:27 AM , Blogger Udan Tashtari said...

गहरे भाव!!

 
At August 28, 2008 at 10:02 AM , Blogger Anil Pusadkar said...

bahut sahi likha aapne,badhai

 
At August 28, 2008 at 7:09 PM , Blogger Nitish Raj said...

बहुत बढ़िया लिखा है लेकिन वक्त बदल रहा है लेकिन धीरे धीरे

 
At August 28, 2008 at 11:07 PM , Blogger दिनेशराय द्विवेदी said...

गागर में सागर।
ये वर्ड वेरीफिकेशन तो हटा दें भाई।

 
At August 29, 2008 at 1:39 AM , Blogger राज भाटिय़ा said...

bahut sunadr
dhanyavad

 
At September 2, 2008 at 10:50 PM , Blogger Pawan Nishant said...

एक हद के बाद दमन साहसी बना देता है। लड़कियां भी इस राह चल पड़ी हैं। आपका -पवन निशान्त

 

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