क्योंकि मैं लड़की हूं
किसी ने कोख में खत्म कर दिया
किसी ने पंगूड़ा में छोड़ दिया
किसी ने मेरे जन्म पर खाना ही छोड़ दिया
सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं लड़की हूं
इसमें उनका कोई कसूर नहीं
कसूरवार तो मैं हूं
क्योंकि मैं लड़की हूं
भाई शहर में पढ़ेगा, मैं घर से निकलूंगी तो कोई देख लेगा
मैं उनका नाम थोड़े ही रोशन करूंगी
रूखा-सूखा खाकर भी भाई से मोटी हूं
दिन-दूने, रात चौगुने बढ़ती हूं
क्योंकि मैं लड़की हूं.
6 Comments:
गहरे भाव!!
bahut sahi likha aapne,badhai
बहुत बढ़िया लिखा है लेकिन वक्त बदल रहा है लेकिन धीरे धीरे
गागर में सागर।
ये वर्ड वेरीफिकेशन तो हटा दें भाई।
bahut sunadr
dhanyavad
एक हद के बाद दमन साहसी बना देता है। लड़कियां भी इस राह चल पड़ी हैं। आपका -पवन निशान्त
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