Saturday, May 1, 2010

मई दिवस है तो क्या


दास्तां पुरानी : रोजी-रोटी के लिए कड़ी मशक्कत करती इस महिला को शायद ये आभास नहीं कि कल शनिवार को हमारा दिन यानी मई दिवस है। सवा सौ साल पहले इसी दिन मजदूरों ने आठ घंटे काम का अधिकार हासिल किया था। यह महिला अपनी बानगी में प्रतिदिन की तरह रोजी-रोटी की लड़ाई लड़ रही है। लड़े भी क्यों न, इसके लिए तो सभी दिन एक जैसे हैं। और यह चिंता भी सताती है कि काम नहीं करूंगी तो चूल्हा कैसे जलेगा। क्या खुद खाऊंगी और क्या इस जिगर के टुकड़े को खिलाऊंगी। मई दिवस पर कहीं सभाएं होंगी तो कहीं समारोह। मजदूरों को बेहतर जीवन देने के बडे़-बडे़ वादे भी होंगे, लेकिन क्या ये वादे बदल पाएंगे इनकी जिंदगी?

2 Comments:

At May 1, 2010 at 3:30 AM , Blogger Udan Tashtari said...

दुआएँ कर सकते हैं इनके बेहतर कल के लिए.

 
At May 26, 2010 at 11:41 AM , Blogger सतीश कुमार चौहान said...

फोटो ने बहुत कुछ कह दिया, कुछ लोग इस भावना के साथ आज भी जी रहे हैं अच्‍छा लगा...
सतीश कुमार चौहान भिलाई
satishkumarchouhan.blogspot.com
satishchouhanbhilaicg.blogspot.com

 

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