Monday, September 22, 2008

ये कैसा सलूक ?

देशभक्ति व कर्तव्यपरायणता की मिसाल बन गए दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर शहीद मोहन चंद्र शर्मा। मगर इसके बदले में सोमवार को आईटीओ स्थित हिंदी भवन में एक समारोह के दौरान उनके परिजनों के साथ किए गए सलूक की जितनी भी निंदा की जाए वो कम है।

यह कार्यक्रम शहीद शर्मा को ही श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए किया गया था, मगर उनके परिजनों को मंच पर बुलाया तो गया लेकिन उन्हें न तो मंच पर जगह मिली और न ही बाद में नीचे बैठने के लिए कुर्सियां। ऐसे में उन्हें मंच की सीढि़यों पर बैठना पड़ा।

इस दौरान शहीद के परिजनों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूरी से उनके (मोहन चंद्र शर्मा) नाम पर गांव में सड़क व स्मारक बनाने की मांग की, लेकिन उन्होंने भी इस मांग की नजरंदाज कर दिया।

7 Comments:

At September 23, 2008 at 12:32 AM , Blogger Anil Pusadkar said...

ऐसे मे कौन शहीद होना चाहेगा देश के लिये

 
At September 23, 2008 at 1:34 AM , Blogger राज भाटिय़ा said...

ठीक कह रहे हे आप,कब तक ऎसा चलेगा???

 
At September 23, 2008 at 5:05 AM , Blogger Udan Tashtari said...

सब मौका परस्तों की दुनिया है..नालायक हैं सब!!

 
At September 23, 2008 at 8:43 AM , Blogger seema gupta said...

"sach kha, bhut sharmnak hai ye"

Regards

 
At September 23, 2008 at 2:11 PM , Blogger pallavi trivedi said...

सचमुच बहुत शर्म की बात है...

 
At September 23, 2008 at 8:06 PM , Blogger Ashok Pandey said...

इस देश में कुछ लोग बेमौत मरने के लिए पैदा होते हैं, कुछ उनके मातम का समारोह मनाने के लिए। मरनेवाले के पास कर्त्तव्‍य ही कर्त्तव्‍य होता है, समारोह मनानेवालों के पास अधिकार ही अधिकार।

 
At September 23, 2008 at 10:58 PM , Blogger Dr. Ashok Kumar Mishra said...

deshbhakti ki bhawna majboot karney key liye saheedon ka samman jaroori hai. shaheed key parijano ko samman na milna sharmnaak hai.

 

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