क्या करे अवाम?
मेरा भारत महान
चांद उससे भी महान
क्या करे अवाम?
घर तो संभलता नहीं
कैसे संभालेंगे देश?
जाने कहां गए वो िदन...
अब क्या होगा िफजा का?
कैसे आएगी िफजा के फूल में बहार?
अब तो नींद की गोली भी नहीं दे रही साथ.
मेरा भारत महान
उन्हें तब शर्म नहीं आती, जब मकान के आगे एक बड़े से बोर्ड पर यह लिखा हुआ दिखता है कि यहां कमरें खाली हैं। न ही किराएदार रखने में शर्म आती है। न ही जब मकान में कोई कमरा खाली होता है तो दूसरे किराएदारों से यह कहने में कि कोई पूछे तो बता देना कि हम जहां रहते हैं, वहां कमरा खाली हुआ है। न ही किराएदारों से मनमाना किराया और बिजली-पानी का बिल वसूल करने में।
हड़ताल से भले ही किसी का खास फायदा न हुआ हो, पर उन्होंने खूब चांदी कूटी। कूटते भी क्यों न आखिर ऐसा मौका बार-बार तो आता नहीं है। इसीलिए मौके की नजाकत समझते हुए उन्होंने तीन सौ पांच रुपये में मिलने वाला रसोई गैस सिलेंडर आठ सौ रुपये तक ब्लैक में बेचा। और उन्होंने प्रति किलो गैस भी सौ से लेकर एक सौ बीस रुपये किलो तक बेची।
भोले-भाले यात्रियों को किस तरह लूटा जाता है, यह कोई बस कंडक्टरों से सीखे। भले ही इन्हें मोटी पगार मिलती हो पर जब तक ये भोले-भोले यात्रियों से पैसे नहीं ऐंठ लेते हैं, तब तक इन्हें सकून नहीं मिलता है। अन्य परिवहन डिपो की बसों में भले ही कंडक्टर यात्रियों के पास जाकर टिकट बना देता हो, और शेष बचे उनके पैसे भी लौटा देता हो। पर उत्तर प्रदेश परिवहन की अधिकांश बसों में न तो कंडक्टर यात्रियों के पास जाकर टिकट बनाते हैं और न ही उन्हें शेष पैसे वापस लौटाते हैं। हां, टिकट पर पीछे शेष बचे पैसे जरूर लिख देते हैं। ऐसा नहीं कि इनके पास खुले पैसे नहीं होते हैं, पर अगर ये पैसे लौटा देंगे तो फिर कमाई कैसे करेंगे?
लालू की रेल कहीं और फायदे में न पहुंच जाए, इसका खास ख्याल रखा जा रहा है। इसीलिए तो भोले-भाले यात्रियों से कहा जाता है कि जितने का टिकट लोगे उसके आधे पैसे में हम ले चलेंगे। बताओ कहां जाना है? अगर बैठ कर सफर करना चाहते हो तो जितने का टिकट मिलता है, उसके आधे पैसे दे देना और अगर आराम से सोते हुए सफर करना चाहते हो तो जितने का टिकट मिलता है उतने पैसे दे देना। टिकट के लिए लाइन में लगने की कोई जरूरत नहीं है। आओ मेरे साथ। ये कोई और नहीं, बल्कि जिन पर यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है वो कहते हैं।
उनका कसूर यहीं है कि वह आम हैं और जब आम हैं तो उसका खामियाजा तो भुगतना पड़ेगा ही। अगर वे इस खामियाजे को भुगतने से बचना चाहते हैं तो फिर खास बनें, नहीं तो भुगतते रहें खामियाजा। लुटते रहें जगह-जगह...