ये है इंडिया मेरी जान
Thursday, May 22, 2014
Monday, April 8, 2013
शर्म मगर इनको नहीं आती..
बेशर्म जुबान, बेतुके बयान..शर्म मगर इनको नहीं आती..सफेदपोशों के ये बयान क्या अवाम की दुखती रग पर नमक छिड़कने से कम हैं.. बांध में पानी नहीं तो क्या हम उसमें पेशाब करके दें:

Saturday, March 23, 2013
रेप पर इनके बोल रेप से कम नहीं!
रेप की घटनाएं न सिर्फ पीडि़तों के जीवन पर कहर बनकर टूटती हैं बल्कि परिवार और समाज पर भी धब्बा होती हैं।

Saturday, May 1, 2010
मई दिवस है तो क्या

दास्तां पुरानी : रोजी-रोटी के लिए कड़ी मशक्कत करती इस महिला को शायद ये आभास नहीं कि कल शनिवार को हमारा दिन यानी मई दिवस है। सवा सौ साल पहले इसी दिन मजदूरों ने आठ घंटे काम का अधिकार हासिल किया था। यह महिला अपनी बानगी में प्रतिदिन की तरह रोजी-रोटी की लड़ाई लड़ रही है। लड़े भी क्यों न, इसके लिए तो सभी दिन एक जैसे हैं। और यह चिंता भी सताती है कि काम नहीं करूंगी तो चूल्हा कैसे जलेगा। क्या खुद खाऊंगी और क्या इस जिगर के टुकड़े को खिलाऊंगी। मई दिवस पर कहीं सभाएं होंगी तो कहीं समारोह। मजदूरों को बेहतर जीवन देने के बडे़-बडे़ वादे भी होंगे, लेकिन क्या ये वादे बदल पाएंगे इनकी जिंदगी?
Monday, April 12, 2010
उफ ये गर्मी

उफ! अभी से ये गर्मी तो मई और जून में क्या होगा? हर किसी की जुबान से बरबस यहीं निकल रहा है। झुलसा देने वाली गर्म हवाओं से पूरा उत्तर भारत बेहाल है।
ऐसे बचें गर्मी से
- ज्यादा भारी काम न करें। तंग जगह व खुली हवा न मिलने वाली जगह पर काम करने से बचें।
- तरल पदार्थ व नमक का अधिक प्रयोग करें, जैसे नींबू पानी, शरबत, स्कवैश इत्यादि।
- दिन में आठ-दस गिलास पानी जरूर लें।
- सूती, हल्के रंग व पूरे शरीर को ढंकने वाले ढीले कपड़े पहनें।
- छोटे बच्चों को धूप में बाहर न निकलने दें।
- धूप में जाने के लिए छतरी का इस्तेमाल करें।
- आंखों पर सनग्लासेज व सिर पर टोपी पहनें।
- खुराक में एंटी ऑक्सीडेंट व विटामिन ए की मात्रा अधिक रखें।
- सब्जियां, तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, खीरे, मूली, गाजर व फलों को अधिक खाएं।
- शराब का सेवन न करें।
- नींबू का सेवन करें। इससे विटामिन सी मिलने के साथ पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है।
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Monday, March 22, 2010
ये कैसे नेता
नेताओं ने शायद यह ठान ही लिया है कि हम नहीं सुधरेंगे। तभी तो वो किसी न किसी बहाने आए दिन चर्चा में बने रहना चाहते हैं। भले ही ये जम्हूरियत में कहते हैं कि जनता ही जनार्दन होती है। आप और हम भगवान होते हैं, लेकिन ये कहने की बात है। असल में ऐसा होता नहीं है। जिस दिन बटन दबाना होता है, उस दिन हम बादशाह होते हैं, लेकिन बटन दबाने के फौरन बाद ये बादशाहत खत्म हो जाती है और हमारे बादशाह बन जाते हैं हमारे प्रतिनिधि, हमारे नेता। लेकिन यहां तो नजारा कुछ और ही है। नेताओं का वोटरों को पटाने के लिए रिश्वत देना कोई नई बात नहीं है, लेकिन बंगलूरु महानगर पालिका चुनावों के दौरान एक नेता ने तो हद ही कर दी। यहां मतदान वाले दिन ही नोट बांट रहे इस नेता ने एक महिला वोटर के ब्लाउज में ही पैसे डाल दिए। ऐसे नेताओं के साथ क्या सलूक होना चाहिए? कब सुधरेंगे ये नेता?
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Sunday, March 14, 2010
तो क्या करें महिलाएं
एक ओर संसद में महिलाओं का बराबरी का हक दिलाने के लिए खींचतान जारी है, दूसरी ओर धर्मगुरु अपना अलग ही राग अलापने में लगे है। राजनीति में आने के लिए मर्द बनने वाले बयान के बाद एक और मौलाना ने महिलाओं के राजनीति में आने पर ऐतराज जताया है।
शिया धर्मगुरु का कहना है कि खुदा ने महिलाओं को अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा करने के लिए बनाया है वे यही करे इसी में सबका भला है। यदि महिलाएं घर छोड़कर राजनीति में आ जाएंगी तो परिवार और बच्चों को कौन संभालेगा। राजनीति महिलाओं का काम नहीं है। महिलाएं अगर अपना फर्ज छोड़ देगी तो अच्छे नेता कैसे आएंगे।
कोई कहता है कि महिलाएं अकेली मंदिर में न जाएं तो कोई कहता है कि वह राजनीति में आने के लिए मर्द बनें तो कोई कहता है कि वह नेता न बनें, नेता पैदा करें..अब आप ही बताएं कि क्या करें महिलाएं?