क्योंकि वह गरीब था
अपने देश की बात ही निराली है। यहां की हर चीज निराली है। अगर ऐसा न होता तो एक ओर चांद पर यान भेजने की तैयारी की जा रही है। दूसरी ओर, मात्र सत्तर फीट गहरे गड्ढे तक पहुंचते-पहुंचते हमें चार दिन लग जाते हैं। उसका सिर्फ यहीं कसूर था, क्योंकि वह गरीब था। अगर वह भी किसी नेता या मंत्री का बेटा होता तो उसे चंद मिनटों में ही बचा लिया जाता।
आगरा से चालीस किलोमीटर दूर स्थित शमसाबाद के लहराकापुरा गांव में पांच दिन पहले डेढ़ सौ फुट गहरे बोरवेल में गिरा दो वर्षीय सोनू हरियाणा के कुरुक्षेत्र के प्रिंस की तरह भाग्यशाली नहीं था। मौत के साथ जंग में सोनू को हार माननी पड़ी। पांचवें दिन सेना के जवानों ने बोरवेल से उसका शव निकाला। उसकी मौत दो दिन पहले ही हो गई थी। उसकी सलामती के लिए की जा रही दुआ भी काम नहीं आई।
इस घटना ने भले ही सभी को झकझोर कर रख दिया हो। लेकिन, हर बार की तरह इस बार भी कोई इस हादसे से सबक नहीं लेगा। और न ही इस हादसे के जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजा दी जाएगी। कुछ दिनों के बाद फिर कोई बच्चा बोरवेल में गिरेगा और सरकारी अमले को पहुंचते-पहुंचते पता नहीं कितने दिन लग जाएं।
वैज्ञानिक चांद पर यान भेजने के बजाए कोई ऐसी मशीन क्यों नहीं बनाते हैं, जो चंद मिनटों में साठ-सत्तर फुट का गड्ढा खोद दे।
4 Comments:
गड्ढा खोदने की बजाय ये नही हो सकता क्या कि खुदे हुए गड्ढे खुले छोडे ही न जाये।बहरहाल आपने लिखा बहुत सटीक्।
अनिल जी की बात से सहमत हुं.
धन्यवाद
"aapke dard mey humara bhee dard shameel hai, hum bhee vhee kehna chahtyen hai jo aap keh rhen hain..."
Regards
bhai apke vicharo se sahamat hun par prashasan nikambha hai .
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