Friday, August 8, 2008

औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत

भारत भूमि ही ऐसी है, जहां लाखों लोग भगवान के 'नाम' पर अपनी दुकानदारी चला रहे हैं। ये दूसरों को तो तरह-तरह की नसीहत देते हैं, पर खुद उस पर अमल नहीं करते हैं।

एक बार एक गांव में एक संत जी लोगों को प्रवचन दे रहे थे कि कभी भी किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए। अचानक एक बालक ने संत जी के पास आया और बोला, कोई ऐसा उपाय बताएं कि मुझे कभी भी किसी तरह का कष्ट न हो।

संत जी बोले, कभी किसी पर क्रोध मत करना। बालक ने दोबारा पूछा, जी समझा नहीं, संत जी ने कहा, किसी पर क्रोध मत करना। बालक ने फिर पूछा, इस पर संत जी आगबबूला हो उठे। उन्होंने पास में रखा डंडा उठाकर उसे पीटना शुरू कर दिया। कहने लगे इतनी देर से मैं बक-बक कर रहा हूं और इसकी समझ में ही नहीं आता है। यह देख वहां मौजूद लोग दंग रह गए।

कुछ देर बाद बालक बोला, संत जी-अभी आप ही कह रहे थे कि कभी किसी पर क्रोध पर करना और आप खुद ही इस तरह का आचरण कर रहे हैं। आप पहले खुद क्रोध से मुक्त हो, उसके बाद ही दूसरों को सिखाएं तो ठीक भी है।

इसी तरह से दूसरों को उपदेश देने वाले न जाने कितने संत देशभर में कुकुरमुत्तों की तरह दिख जाएंगे।
एक बार एक आदमी ने साधू से पूछा, मेरी बीवी बहुत परेशान करती है। कोई उपाय बताएं? साधू बोला, अगर उपाय होता तो मैं साधू क्यों बनता।

हां, अगर देखा जाए तो इस साधू के कथन में कुछ सच्चाई दिखती है। यह हकीकत है कि देश में न जाने कितने ऐसे लोग हैं, जो पारिवारिक जिम्मेदारी न उठा पाने के कारण संत बन गए। और कुछ ऐसे भी है कि जब उनसे कोई भी बुरा काम नहीं बचा, तब आखिर में जाकर वह संत हो गए।

संत के लिए तो एक कुटी ही काफी है, उसे भौतिकवादी चीजों से क्या लेना-देना। पर आजकल के संतों का आश्रम किसी पांच सितारा होटल से कम नहीं दिखता है। बस इतना ही नहींउनके आगे-पीछे वाहनों का काफिला भी देखा जा सकता है। जो कहींपर न मिले वह इन तथाकथित संतों के पास मिलेगा।

इनके एक इशारे पर भक्त खून की होली खेलने के लिए तैयार रहते हैं। और ये भगवान के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं। किसी भी नामी-गिरामी संत को ले लो तो वह जरूर कभी न कभी किसी स्कैंडल को लेकर चर्चा में जरूर रहा होगा।

भोले-भाले लोगों को धर्म, कर्म के नाम पर लूट रहे ये संत क्या आतंकियों से कम घातक हैं? कब तक लोग इनके जाल में फंसे रहेंगे?

6 Comments:

At August 9, 2008 at 1:05 AM , Blogger Udan Tashtari said...

बिल्कुल सही मुद्दा उठाया है.

 
At August 9, 2008 at 1:14 AM , Anonymous Anonymous said...

Baat to aap theek kah rahe hain.... par kaafi purani baat hai... Samasya ye hai ki ham sabhi apni zindagi me paap karte rahte hain aur sath hi bhagwan se darte rahte hain aur in tathakathit santo ko sunkar aur inhe chadhava de kar ham apne aap me ye samajh ke khush ho lete hain ki papon ka prayashchit ho gaya... aur ham aur paap karne ke liye azad ho jate hain kyonki pichla account to hamne barabar kar diya...
Bahut hi chalak aur swarthi kism ke log hain hum...
Bhagwan bhi apna sar pakad lete honge ye sab dekhkar.

 
At August 9, 2008 at 1:26 AM , Blogger Nitish Raj said...

संतों के क्या कहने-ये जो कहते हैं उससे उल्ट करते हैं। इनको किसी के दर्द की परवाह नहीं। बस इनकी झोली भरनी चाहिए। सही लिखा है।

 
At August 9, 2008 at 1:43 AM , Blogger सचिन मिश्रा said...

सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद

 
At August 9, 2008 at 8:16 AM , Blogger बालकिशन said...

बहुत सही कहा आपने.
ढोंगी संतो कि कलई खोल दी.

 
At August 10, 2008 at 1:08 AM , Blogger राज भाटिय़ा said...

नामी-गिरामी संत को पहले पकड कर पीटना चाहिये, फ़िर इन से काम करवाना चाहिये,धन्यवाद बहुत अच्छा लगा

 

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