Wednesday, July 30, 2008

बेगाने हुए अपने

उसने अपने बेटों की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। नौ माह कोख में रखा, जन्म दिया, अंगुली पकड़कर चलना सिखाया यह सोचकर कि बड़े होकर बेटे उसकी बुढ़ापे की लाठी बनेंगे, लेकिन उन्हीं बेटों ने उसे दर-दर की ठोकरें खाने के लिए बेघर कर दिया।

आज वह खुद को भी ठीक से नहीं संभाल सकती। वक्त और उम्र की मार ने तो केवल उसके शरीर को कमजोर किया, लेकिन उसका कलेजा छलनी किया उसके बेटों के व्यवहार ने, जो पैसे की हवस में इस कदर अंधे हो गए कि उन्हें अपने सीने से लगाकर अमृत सरीखा दूध पिलाने वाली मां भी बोझ लगने लगी।

80 वर्षीय फीनो आजकल तख्त श्री केसगढ़ साहिब में सेवादारों के रहमोकरम पर जी रही है। फीनो के नाम अमृतसर में कई एकड़ जमीन थी, लेकिन जिस फीनो का दूध उसके बेटों की रगों में लहू बनकर दौड़ रहा है, उन्हीं बेटों ने उसे खून के आंसू रोने पर मजबूर कर दिया और सारी जमीन अपने नाम करवाकर फीनो को घर से निकाल दिया। फीनो का एक बेटा बटाला में और दूसरा अमेरिका में रहता है। फीनो का एक पोता तरसेम सिंह अजनाला में सीआईडी इंस्पेक्टर है।

फीनो तो सिर्फ उदाहरण भर है। देश में न जाने कितनी ऐसी फीनो होंगी। उनमें से कुछ ऐसी भी होंगी, जो शायद यह सोचकर कि मेरे लाड़लों की बदनामी न हो इसके चलते मुंह नहीं खोलती हैं।कुछ लोग शायद यह भूल जाते हैं कि आज हम जैसा अपने मां-बाप के साथ सलूक कर रहे हैं, कल मेरे साथ भी वैसा ही होगा।

4 Comments:

At July 30, 2008 at 11:01 PM , Blogger Udan Tashtari said...

सब यहीं बराबर होगा-भुगतेंगी अपनी करनी का फल ये औलादें.

स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

कृपा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेवे.. टिप्पणी देने में सुविधा होगी.

 
At July 30, 2008 at 11:05 PM , Blogger गरिमा said...

जाने क्यों लोग अपना भविष्य नही देख पाते, अगर देख सकते तो ऐसा नही कर पाते.. दुखद है पर सच है

 
At July 31, 2008 at 3:05 AM , Blogger सचिन मिश्रा said...

सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद

 
At July 31, 2008 at 12:00 PM , Blogger बालकिशन said...

सच कहा आपने.
इसी औलादों को देखकर या उनके बारे में पढ़ सुन कर मन में क्रोध भर जाता है. और आवेश में दिल से जो कुछ निकालता है जैसा समीर भाई ने कहा है.

 

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