जख्म जो नासूर बन गए
उसने सिर्फ इसलिए अपनी पत्नी को छोड़ दिया, क्योंकि उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति नहीं हो सकी, जबकि उसके दो बेटी हैं। पत्नी को छोड़ने वाले ये महाशय कोई और नहीं बल्कि दूसरों को ज्ञान का पाठ पढ़ाने वाले गुरूजी हैं, जबकि इनकी पत्नी भी शिक्षक थी।
गुरूजी ने अपनी दो मासूम बच्चियों और पत्नी को छोड़ने से पहले यह भी नहीं सोचा कि वे किसके सहारे रहेंगी। क्या इन्होंने इसीलिए शादी की थी? या फिर साथ जीने-मरने की कसमें खाई थीं। भले ही आज सब कुछ बदल गया हो, पर शायद कुछ लोगों की मानसिकता में बदलाव नहींआया है। अगर आया होता तो शायद ये महाशय बेटे के लिए पत्नी व पुत्रियां नहीं छोड़ते। क्योंकि आज कई ऐसे बेटे भी हैं, जो अपने मां-बाप का नाम डुबो देते हैं और कई ऐसी बेटियां हैं जो मां-बाप का नाम रोशन करती हैं। फिर ये महाशय तो दूसरों को ज्ञान का पाठ पढ़ाते थे, इतनी अज्ञानी कैसे बन गए।
उस मां की जितनी भी तारीफ की जाए, वो कम है। क्योंकि भले ही पति ने उसका साथ छोड़ दिया, पर उसने हार नहीं मानी। जीवन में कई तरह की मुश्किलों से संघर्ष कर उसने अपनी बेटियों की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। समय के साथ-साथ अब उसकी दोनों बेटी भी बड़ी हो गई हैं। इस वक्त दोनों बेटी भी दूसरों को ज्ञान बांट रही हैं, जबकि इनकी मां अब अध्यापक पद से रिटायर हो गई है। बेटी मां-बाप की तरह सरकारी नौकरी तो नहीं पा सकीं, पर वह प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाती हैं।
बड़ी बेटी उसी शहर में पढ़ाती है, जिस शहर में उसका बाप एक अन्य महिला के साथ शादी कर रह रहा है। अब उसके एक बेटा भी है। बेटी रिश्तेदार के यहां रहती है और बाप से यह भी नहीं होता है वह यह कहे कि जो हुआ सो हुआ दूसरों के यहां क्यों मेरे पास रहो बेटी। छोटी बेटी दूसरी जगह पढ़ाती है। बड़ी बेटी की उम्र शादी लायक हो गई है। इसके चलते मां की चिंता और बढ़ गई है। हालांकि उसने अपनी बेटी के लिए लड़के की तलाश भी शुरू कर दी है।
समय के साथ-साथ अब उसके जख्म नासूर बन गए हैं। वह जहां भी बेटी के लिए लड़का देखती है या फिर उसकी शादी की बात चलाती है। तो सबसे पहले यहीं सवाल पूछा जाता है कि लड़की के पिताजी क्यों नहीं आए। वो क्या करते हैं, बार-बार आप ही आती हैं, वो क्यों नहींआते हैं। इसी तरह से कई प्रश्न उससे किए जाते हैं, पर वह इनका क्या जवाब दे। बाप की सेहत पर तो कई असर नहीं पड़ा है, पर मां दर-दर की ठोकरें खा रही है बेटी की शादी के लिए। कैसी होगी उसकी लाडली की शादी। जब तक दोनों लाडली बेटियों की शादी नहीं हो जाती, तब तक उसे कैसे सुकून मिलेगा।
खैर, वक्त के साथ-साथ गहरे से गहरे जख्म भी भर जाते हैं, पर इन मां-बेटियों के जख्म भी क्या भर सकेंगे। आज ये हालात हैं कि पत्नी को उसे पति कहने में शर्म आती है और बेटी तो उससे बात करना भी गंवारा नहीं समझती हैं। भले ही मां को रात-दिन नींद न आती हो, पर बाप की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा है। उसे अपने किए का भी पछतावा नहीं है। और उस मां से पूछों जिसे दिन-रात अपनी लाडली बेटियों की शादी की चिंता सोने नहीं देती।
3 Comments:
मनुष्य आैर दानव में थोड़ा सा ही फासला होता है। एेसे दानवों को समाज में नंगा करते रहिए आैर लोगों को उनका हश्र भी बताईए ताकि कोई दानव में तब्दील होने से पहले चिंतन कर ले।
http://irdgird.blogspot.com
सचिन जी,
नए चिट्टे की बहुत बहुत बधाई, लिखते रहें और हिन्दी चिट्टा जगत को अपने लेखन से समृद्ध करें, शुभकामनायें....
आपका मित्र
सजीव सारथी
09871123997
सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद
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